जन्म : वीर नि.सं. २४५८ , शाके १८५४ , वि.सं. १९८९ , माघ शुक्ल १३ , फ़रवरी १९३२
जन्म स्थान : सांचोडी, जिला-पाली , राजस्थान
जन्म नाम : बख्तावरमलजी , माता : सुमतिबाई , पिता: मयाचंदजी देवीचंदजी
दीक्षा : २२ वर्ष की आयू में, शासन सम्राट नेमिसुरीजी के पट्टधर , साहित्य सम्राट पू. आ. श्री लावण्यसूरीजी की प्रेरणा व आशीर्वाद प्राप्त करके, वीर नि.सं. २४८० , शाके १८७५ , वि.सं. २०१० के मगसर वदी ३ , नवम्बर १९५४ को, चातुर्मास के बाद पुणे शहर(महाराष्ट्र) में, आ. श्री के वरद हस्ते दीक्षा ग्रहण की एवं मु. श्री विकास विजयजी नामकरण होकर आप श्री आ. लावण्यसूरीजी के शिष्य घोषित हुए |
गणी व पंनयास पद : वीर नि.सं. २५००, शाके १८९५, वि.सं. २०३० , ई. सन १९७४ को आ. श्री सुशीलसुरीजी के हस्ते उदयपुर (राजस्थान) में गणी पद व् पंनयास पद से अलंकृत हुए |
उपाध्याय पद : वीर नि.सं. २५०५ , शाके १९०० , वि.सं. २०३५ के वैशाख सुदी ११ मंगलवार , मई १९७९ को पू. आ. श्री सुशीलसुरीजी के वरद हस्ते सादड़ी नगर, पावापुरी जल मंदिर और कांच मंदिर के प्रतिश्तोत्सव के अवसर पर , उपाध्याय पद से विभूषित किया गया |
आचार्य पद : वीर नि.सं. २५०५ , शाके १९०० , वि.सं. २०३५ के आषाढ़ सुदी १०, जुलाई १९७९ को पू. आ. श्री सुशीलसुरीजी के करकमलो से उपा. श्री विकासविजयजी को नमस्कार महामंत्र के तीसरे पद आचार्य पद से राजस्थान-जालोर जिले के गुढ़ा-बालोतान में अलंकृत किया गया और पू. आ. श्री विकासचंद्रसूरीश्वरजी नामकरण से प्रसिद्ध हुए |
स्वर्गवास : वीर नि.सं. २५०९, शाके १९०४ , वि.सं. २०३९ पौष सुदी….दी. ३-१-१९८३ को आचार्य श्री विकासचन्द्रसूरीजी का अहमदाबाद में स्वर्गवास हुआ |