आप भी स्थूलीभद्रसूरीजी के शिष्य व पट्टधर थे| आपके आगे श्री आर्य शब्द यक्षा साध्वी के आश्रम में बड़े होने से जुड़ता है| आपका आश्रम अभ्यास भी ११ अंग व १० पूर्व का था| आपके अवन्ती नगर में आगमन पर आपको देखकर संप्रति राजा को जातीस्मरण ज्ञान हुआ व आपसे प्रतिबोधित होकर उन्होंने जैन धर्म की बहुत ही महान प्रभावना की| आपने २५ वर्ष की आयु में दीक्षा ली व ७५ वर्ष संयम जीवन पालनकर १०० वर्ष की आयु पूर्ण करके उज्जैन में देवलोक हुए| आप ३० वर्ष तक युगप्रधान पद पर रहे|