सं. १६४४ फागन सुद २ को नथमलजी की धर्मपत्नी श्राविका नायकदेवी के कुक्षी से जन्म हुआ| सं. १६५४ माघ वद २ को आप दीक्षित हुए| सं. १६८४ माघ सुद १० को आपको भट्टारक पदवी देकर गच्छनायक की पदवी से अलंकृत किया| सहस्त्रकूट की रचना आपके ही शास्त्रों में से प्राप्त हुई है, शत्रुंजय तीर्थ पर आदिश्वर भगवान की दायी बाजु, पांच पांडव के देरासर में, मोतिशाह की टुंक में आज भी दर्शनीय एवं पूजनीय है| ६४ वर्ष की दीक्षा पर्याय, २८ साल सूरीपद का पर्याय वाले आप गीतार्थो के पास आलोचना कर व अनशन का र७४ वर्ष का आयुष्य पूर्ण कर सं. १७०८ आषाढ़ सुद २ को समाधिपूर्वक देवलोक हुए|